
सूत्रों के मुताबिक, आजम खां की अखिलेश व पार्टी के बड़े नेताओं से दिलों की दूरियां बढ़ रही हैं। खास बात यह है कि सरकार और पार्टी भी इस बार इन दूरियों को कम करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। फिलहाल मंशा, आजम को उनके हाल पर ही छोड़े रखने की है। यही वजह है कि राज्य कैबिनेट की बैठक में आठ बार न जाने के बावजूद न तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने और न सपा के दूसरे नेताओं ने ही उन्हें मनाने का कोई प्रयास किया।
बताते हैं कि सपा अपनी तरफ से आजम को नाराज करने या मनाने की कोई पहल नहीं करना चाहती। अलबत्ता, उन्हें हर मौके पर उतनी तवज्जो मिलेगी, जिसके वह हकदार हैं। तय उन्हें करना है कि वह उसे कितना लेना चाहते हैं। मसलन, आगरा में बुधवार को सपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के मंच पर जो कुर्सियां लगी थीं, उसमें एक आजम खां के लिए थी। कार्यक्रम शुरू होने के कुछ समय पहले तक वह नहीं आए तो उस पर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन को बैठा दिया गया। संदेश साफ है कि किसी के इंतजार में पार्टी या सरकार कहीं रुकने वाली नहीं है। इतना ही नहीं, कार्यसमिति में तो नरेश अग्रवाल और अबू आसिम आजमी ने आजम का नाम लिए बिना ही पार्टी में उनकी कार्यशैली को लेकर परोक्ष रूप से सवाल भी उठा दिया।
उधर, आजम के करीबी सूत्रों का कहना है कि बतौर मंत्री वह अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं, लेकिन सरकार और पार्टी उनकी बात ही नहीं सुन रही है। संगठन में उनके लोगों को तरजीह नहीं दी गई। सरकार में अल्पसंख्यक निकायों में नियुक्तियों का मामला लटका है। आजम अपनी तरफ से कार्यवाही कर चुके हैं। लेकिन उनकी फाइलों को ऊपर से हरी झंडी नहीं मिल रही है। जबकि, प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री होने के कारण मुस्लिम समुदाय उनसे भी जवाब मांग रहा है। सरकार की असफलता पर उनके पास जवाब नहीं है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि यही हालात रहे तो आजम खुद ही सपा को अलविदा कह सकते हैं।
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