Friday, 13 September 2013
कांग्रेस का दांव 'धर्मनिरपेक्षता'
भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के ऐलान के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर वह कैसे उनकी काट ढूंढे।
कांग्रेस का पहला दांव धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की बहस छेड़कर वोटों के धुव्रीकरण करने पर रहेगा। मोदी के ऐलान के साथ ही पार्टी ने इसकी शुरुआत भी कर दी है।
मुजफ्फरनगर दंगों के लिए कांग्रेस ने मोदी को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी ने कहा है कि अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाने के बाद ही तय हो गया था कि प्रदेश में दंगे होंगे।
दरअसल, मोदी के विकास पुरुष की छवि को टक्कर देना कांग्रेस के लिए मुश्किल चुनौती है। इसलिए धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता के नारे को ही बुलंद करने का ही कांग्रेस संकेत दे रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने कहा कि अर्थव्यवस्था फिर पटरी पर आ रही है। औद्योगिक सूचकांक बढ़ा है। सरकार ने संसद के मानसून सत्र में खाद्य सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण, पेंशन, कंपनी बिल समेत कई बड़े कानून बनाकर जनता को तोहफा दिया है।
मगर बढ़ती महंगाई, बढ़ती मंदी और बढ़ते भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रटे रटाए जवाब के अलावा पार्टी के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। ऐसे में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दलों को इकट्ठा कर मोदी पर हमला करने की कांग्रेस की पहली कोशिश है।
साथ ही गुजरात दंगों के जिन्न को पार्टी दोबारा फिर से बाहर निकालने पर विचार कर रही है। प्रधानमंत्री के घर कांग्रेस कोर कमेटी की बैठकों से लेकर दस जनपथ तक कई तरह की रणनीतियों और योजनाओं पर विचारों की जद्दोजहद जारी है।
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हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर सहित उसके आसपास के जिलों में फैली सांप्रदायिक हिंसा पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
कोर्ट ने सरकार को दो माह की लंबी मोहलत देते घटना से संबंधित समस्त ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। याचिका पर सुनवाई 18 नवंबर को होगी।
रावेंद्र रजौरिया द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश शिवकीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की खंडपीठ ने कहा कि क्षेत्र में शांति कायम रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
महाधिवक्ता एसपी गुप्ता ने बताया कि दंगों की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित कर दिया गया है, जो दो माह में अपनी रिपोर्ट देगा। इस पर कोर्ट ने दो माह बाद आयोग की रिपोर्ट भी दाखिल करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों की पुलिस जांच करे तथा याची अगली तारीख पर यदि कोई अन्य तथ्य प्राप्त करता है तो उससे न्यायालय को अवगत कराए।
याचिका में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनेट मंत्री आजम खां को भी पक्षकार बनाया है हालांकि कोर्ट ने उनको नोटिस जारी नहीं किया है।
याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता अर्चना त्यागी ने कहा कि पुलिस की लापरवाही के कारण दंगा हुआ जिसकी निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। जितनी भी हत्यायें हुई हैं उनकी प्राथमिकी तक नहीं दर्ज की गई। चार दिन तक जिले में कोई डीएम नहीं था।
कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी के अलावा मुजफ्फरनगर के डीएम और एसएसपी को भी जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने सरकार को दो माह की लंबी मोहलत देते घटना से संबंधित समस्त ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। याचिका पर सुनवाई 18 नवंबर को होगी।
रावेंद्र रजौरिया द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश शिवकीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की खंडपीठ ने कहा कि क्षेत्र में शांति कायम रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
महाधिवक्ता एसपी गुप्ता ने बताया कि दंगों की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित कर दिया गया है, जो दो माह में अपनी रिपोर्ट देगा। इस पर कोर्ट ने दो माह बाद आयोग की रिपोर्ट भी दाखिल करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों की पुलिस जांच करे तथा याची अगली तारीख पर यदि कोई अन्य तथ्य प्राप्त करता है तो उससे न्यायालय को अवगत कराए।
याचिका में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनेट मंत्री आजम खां को भी पक्षकार बनाया है हालांकि कोर्ट ने उनको नोटिस जारी नहीं किया है।
याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता अर्चना त्यागी ने कहा कि पुलिस की लापरवाही के कारण दंगा हुआ जिसकी निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। जितनी भी हत्यायें हुई हैं उनकी प्राथमिकी तक नहीं दर्ज की गई। चार दिन तक जिले में कोई डीएम नहीं था।
कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी के अलावा मुजफ्फरनगर के डीएम और एसएसपी को भी जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
जिनके दोस्त ऐसे हों उन्हें दुश्मनों की जरुरत नहीं होती
मुजफ्फरनगर हिंसा को लेकर सपा की सियासत में दरार आ गई है। चौतरफा हमले से घिरी पार्टी के नेता अब एक-दूसरे की घेरेबंदी में लग गए हैं।
पूर्व सांसद अमीर आलम ने सपा महासचिव एवं राज्यमंत्री का दर्ज प्राप्त अनुराधा चौधरी और गो-सेवा आयोग के अध्यक्ष पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी है।
उन्होंने कहा कि प्रशासन के नकारेपन की वजह से अल्पसंख्यकों पर कहर बरपा है। एक लाख से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। डीजीपी और एडीजी को हटाने के साथ पूर्व डीएम के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए।
बिजनौर लोक सभा प्रत्याशी पूर्व सांसद अमीर आलम ने राज्यमंत्री चितरंजन स्वरूप, वीरेंद्र सिंह, सपा जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी, बेटे विधायक नवाजिश आलम और इलम सिंह की मौजूदगी में मीडिया के समक्ष यह आरोप लगाए।
उन्होंने कहा कि सरकारी मशीनरी के नकारेपन की वजह से जिले में कहर बरपा है। खुफिया तंत्र और प्रशासन द्वारा गलत रिपोर्ट दिए जाने से शासन गंभीरता नहीं दिखा पाया है।
पूर्व डीएम सुरेंद्र सिंह के साथ सपा महासचिव अनुराधा चौधरी और मुकेश चौधरी ने एक विशेष वर्ग के लोगों को उकसाने का काम किया है। कुटबी में जो जुल्म हुआ, उसमें मुकेश चौधरी के एक करीबी का हाथ रहा है।
उन्होंने सीबीआई जांच कराने की बात से इंकार करते हुए कहा कि अखिलेश यादव सरकार जल्द से जल्द दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। पूर्व सांसद ने कहा कि यदि खालापार की सभा नहीं होती तो इस तरह की नौबत नहीं आती।
एसएसपी ने हमारी नहीं सुनी थी: मंत्री
राज्यमंत्री चितरंजन स्वरूप और वीरेंद्र सिंह ने कहा कि घटना से अगले दिन ही मलिकपुरा का भ्रमण करने के बाद डीएम और एसएसपी से ममेरे भाइयों के परिजनों के नाम निकालने के लिए कहा था। लेकिन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने नहीं सुनी, जिस कारण यह स्थिति पैदा हुई। उन्होंने कहा कि कुछ गांवों में हुई हिंसा को सांप्रदायिक रूप की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए।
सिद्दीकी के खिलाफ भी कार्रवाई होगी
सपा नेताओं ने खालापार में सभा को लेकर विवादों से घिरे सपा के प्रदेश सचिव राशिद सिद्दीकी के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की मांग की गई। जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी ने कहा कि कार्रवाई के लिए प्रदेश अध्यक्ष को रिपोर्ट दी जा चुकी है।
पूर्व सांसद अमीर आलम ने सपा महासचिव एवं राज्यमंत्री का दर्ज प्राप्त अनुराधा चौधरी और गो-सेवा आयोग के अध्यक्ष पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी है।
उन्होंने कहा कि प्रशासन के नकारेपन की वजह से अल्पसंख्यकों पर कहर बरपा है। एक लाख से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। डीजीपी और एडीजी को हटाने के साथ पूर्व डीएम के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए।
बिजनौर लोक सभा प्रत्याशी पूर्व सांसद अमीर आलम ने राज्यमंत्री चितरंजन स्वरूप, वीरेंद्र सिंह, सपा जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी, बेटे विधायक नवाजिश आलम और इलम सिंह की मौजूदगी में मीडिया के समक्ष यह आरोप लगाए।
उन्होंने कहा कि सरकारी मशीनरी के नकारेपन की वजह से जिले में कहर बरपा है। खुफिया तंत्र और प्रशासन द्वारा गलत रिपोर्ट दिए जाने से शासन गंभीरता नहीं दिखा पाया है।
पूर्व डीएम सुरेंद्र सिंह के साथ सपा महासचिव अनुराधा चौधरी और मुकेश चौधरी ने एक विशेष वर्ग के लोगों को उकसाने का काम किया है। कुटबी में जो जुल्म हुआ, उसमें मुकेश चौधरी के एक करीबी का हाथ रहा है।
उन्होंने सीबीआई जांच कराने की बात से इंकार करते हुए कहा कि अखिलेश यादव सरकार जल्द से जल्द दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। पूर्व सांसद ने कहा कि यदि खालापार की सभा नहीं होती तो इस तरह की नौबत नहीं आती।
एसएसपी ने हमारी नहीं सुनी थी: मंत्री
राज्यमंत्री चितरंजन स्वरूप और वीरेंद्र सिंह ने कहा कि घटना से अगले दिन ही मलिकपुरा का भ्रमण करने के बाद डीएम और एसएसपी से ममेरे भाइयों के परिजनों के नाम निकालने के लिए कहा था। लेकिन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने नहीं सुनी, जिस कारण यह स्थिति पैदा हुई। उन्होंने कहा कि कुछ गांवों में हुई हिंसा को सांप्रदायिक रूप की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए।
सिद्दीकी के खिलाफ भी कार्रवाई होगी
सपा नेताओं ने खालापार में सभा को लेकर विवादों से घिरे सपा के प्रदेश सचिव राशिद सिद्दीकी के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की मांग की गई। जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी ने कहा कि कार्रवाई के लिए प्रदेश अध्यक्ष को रिपोर्ट दी जा चुकी है।
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फांसी बोल तो दी पर…….
अदालत भवन |
नई दिल्ली. दिल्ली की एक अदालत ने दामिनी गैंगरेप के दोषियों को फांसी की सजा सुना दी है। हालांकि इस पर तामील की लंबी कानूनी प्रक्रिया है। वैसे भी, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक देश की अदालतों ने 10 सालों में 1455 कैदियों को फांसी की सजा सुनाई है।
सजा ए मौत को लेकर भारत के विरोधाभासी रवैये के बीच अदालत के इस फैसले पर देश ही नहीं दुनियाभर की निगाहें लगी रहीं।
देश की अदालतों में हर साल औसतन 130 लोगों को फांसी की सजा सुनाई जाती है लेकिन बीते 17 साल में महज तीन लोगों को ही मौत की सूली पर चढ़ाया जा सका है। दोषी को सजा देने की लंबी प्रक्रिया के बावजूद बीते साल भारत ने मौत की सजा पर पाबंदी जुड़े संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश किए गए प्रस्ताव के मसौदे का विरोध किया था। इस प्रस्ताव में दुनिया में कहीं भी फांसी पर रोक की बात कही गई थी ताकि सजा ए मौत को खत्म किया जा सके। भारत ने कहा कि हर देश को अपनी कानून व्यवस्था तय करने का अधिकार है।
आडवाणी जी की चिट्ठी राजनाथ जी के नाम
प्रिय श्री राजनाथ सिंह जी,
आज दोपहर को जब आप मुझे आज के संसदीय अधिकरण के बैठक की सूचना देने आये थे तब मैंने अपने मन की व्यथा के बारे में और आपके कार्य संचालन के विषय में अपनी निराशा के बारे में कुछ कहा था।
मैंने आपको उस समय कहा था कि मैं विचार करूँगा कि बैठक में आकर अपनी बातें सभी सदस्यों को कहूँ अथवा नहीं। अब तय किया है कि आज के बैठक में न आऊं यही उचित होगा।
सादर,
आपका
(हस्ताक्षर)
लाल कृष्ण आडवाणी
युद्ध तो अमानवीय ही होते हैं
युद्ध तो सभी अमानवीय ही होते हैं लेकिन सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध ने क्रूरता की सभी हदें पार कर दी हैं। छिटपुट घटनाओं से शुरू हुआ सीरिया का यह गृहयुद्ध तीसरे साल तक आ पहुंचा है। राष्ट्रपति बशर अल असद के समर्थक हों या हथियारबंद विद्रोही, सभी एक-दूसरे पक्ष पर अत्याचार कर रहे हैं। हालांकि सभी पक्ष अपनी ओर से की गई हिंसा को यह कहकर जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि वे केवल अपनी मान्यताओं या विश्वास को बचाने की जंग लड़ रहे हैं।
हत्याओं के इस खेल में अत्याचारी लोग खुद ही डिजिटल कैमरों, स्मार्टफोन्स की मदद से अपनी क्रूरता की वीडियो क्लिप बना रहे हैं या उन्हें तस्वीरों में कैद कर रहे हैं। लोगों को यातनाएं देते हुए, किसी की सरेआम हत्या करते हुए या अन्य बर्बर और निर्मम किस्म की घटनाओं को ये लोग इंटरनेट पर प्रचारित भी कर रहे हैं। इनकी प्रमाणिकता जांचना भी मुश्किल होता है। सीरिया के बाहर के फोटो पत्रकारों के लिए सीरियाई लड़ाकों के निर्मम कृत्यों को कैमरे में कैद करना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' को कुछ ऐसी तस्वीरें मिली हैं जो मानवता को शर्मसार करने वाली हैं।
हत्याओं के इस खेल में अत्याचारी लोग खुद ही डिजिटल कैमरों, स्मार्टफोन्स की मदद से अपनी क्रूरता की वीडियो क्लिप बना रहे हैं या उन्हें तस्वीरों में कैद कर रहे हैं। लोगों को यातनाएं देते हुए, किसी की सरेआम हत्या करते हुए या अन्य बर्बर और निर्मम किस्म की घटनाओं को ये लोग इंटरनेट पर प्रचारित भी कर रहे हैं। इनकी प्रमाणिकता जांचना भी मुश्किल होता है। सीरिया के बाहर के फोटो पत्रकारों के लिए सीरियाई लड़ाकों के निर्मम कृत्यों को कैमरे में कैद करना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' को कुछ ऐसी तस्वीरें मिली हैं जो मानवता को शर्मसार करने वाली हैं।
अशोक खेमका को फंसाने की साजिश?
राबर्ट बढेरा के चेहरे को बेनकाब करने वाले अशोक खेमका को सोनिया गाँधी के इशारे पर हरियाणा सरकार झूठे मामलो में फंसाने की साजिश रच रही है ..
रॉबर्ट वाड्रा डील पर अपनी रिपोर्ट से हलचल मचा देने वाले सीनियर आईएएस अशोक खेमका फिर 'निशाने' पर हैं। हरियाणा की कांग्रेस सरकार उन्हें घेरने की तैयारी में है। बीज विकास निगम में मूंग बीज खरीद में गड़बड़ी के आरोपों पर खेमका के खिलाफ विजिलेंस जांच के आदेश दिए गए हैं। विजिलेंस ब्यूरो अगले हफ्ते से मामले की जांच शुरू कर देगा। उधर, खेमका ने मुख्य सचिव को भेजे जवाब में कहा है कि मूंग बीज खरीद प्रक्रिया में किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। खेमका के मुताबिक उन्होंने तय रेट से कम में बीज खरीदवाया है।
पांचवे दिन निकाला गंगनहर में फेंका गया ट्रैक्टर
vivekraj मुजफ्फरनगर: नहर के पानी में दफन हैं अभी भी कई राज 2013-09-13T10:4 1:44
मुजफ्फरनगर। ग्रामीणों की कोशिश और जिद का ही आलम था कि घटना के पांचवे दिन गंगनहर में फेंका गया एक ट्रैक्टर बाहर निकाला गया।
ट्रैक्टर के टायर को धारदार हथियार से काटकर गंगनहर में फेंका गया था।
अभी और भी ट्रैक्टर को आसपास के गांव के लोग ढूंढ रहे हैं।
गंगनहर में ट्रैक्टर फेंके जाने की शिकायत रविवार से ही ग्रामीण पुलिस-प्रशासन के पास कर रहे थे।
उनकी शिकायत के बावजूद न पुलिस और न ही प्रशासन ने कोई प्रयास किया। लेकिन बसेड़ा गांववालों ने प्रयास जारी रखा।
प्रयास के तहत ही उन्हें जौली के निकट गंगनहर में गुरुवार को एक ट्रैक्टर मिला।
निकाला गया तो पता चला कि वह ट्रैक्टर बहेड़ा गांव के किसी और का है। ऐसे में लोगों का गुस्सा और बढ़ गया।
महापंचायत के दिन से ही अपने गुमशुदा चाचा की तलाश में भोपा थाना पहुंचे ओंकार सिंह ने कहा कि उन सभी ने बार-बार प्रशासन और पुलिस से मांग की है कि वे नहर को एक
बार के लिए सुखाएं। नहर सूखने पर ही दूध का दूध और पानी का पानी होगा।
लोगों ने आरोप लगाया कि नहर में और भी ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और दबी लाशें मिल
सकती हैं। अब तक जौली गांव के पास से ही कुल 18 ट्रैक्टर
जले और डूबे अवस्था में मिले हैं।
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित
नई दिल्ली. आखिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने का विरोध क्यों कर रहे हैं लाल कृष्ण आडवाणी? सुषमा स्वराज और मुरली मनोहर जोशी को मोदी से क्या तकलीफ है? मोदी ने जिस आरएसएस का गुजरात में दमन किया उस संघ परिवार में अचानक मोदी-प्रेम क्यों उमड़ आया? इन सभी सवालों के जवाब देश जानना चाहता है।
मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर भाजपा के पार्लियामेंट्री बोर्ड का फैसला एक औपचारिकता मात्र है। 12-सदस्यीय इस बोर्ड में मोदी के पक्ष में आठ लोग हैं। लेकिन बड़े फैसलों के लिए पार्टी में वोट विभाजन की परंपरा नहीं है। इसलिए नेतृत्व आम सहमति की कोशिश में लगा है।
उसकी उम्मीद का कारण आडवाणी और जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं का अतीत में किया व्यवहार है।
मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। मनाए जाने पर अगले दिन वापस ले लिया।
इसी तरह बाबरी मस्जिद ध्वंस मामले में चार्जशीट होने के बाद मुरली मनोहर जोशी ने भी सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया था। फिर दो दिन बाद वापस ले लिया था। इस प्रकरण को शोले फिल्म के एक सीन से तुलना करते हुए एक अंग्रेजी दैनिक ने शीर्षक दिया था - जोशी सेज़, सुसाइड कैंसिल।
इस बार, आडवाणी के मोदी विरोध की दलील है मध्य प्रदेश विधानसभा के दो महीने बाद होने वाले चुनाव। आडवाणी को मनाने गए राजनाथ सिंह जैसे नेताओं से उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश की 26 विधानसभा सीटों पर अल्पसंख्यक वोट प्रभावी हैं। यदि मोदी की वजह से पार्टी ये सीटें हार जाए और दस साल से सत्ता पर काबिज शिवराज सिंह को गद्दी छोडऩी पड़े, तो यह कदम लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी आत्मघाती साबित हो सकता है। इसलिए तीन महीने रुकने में कोई हर्ज नहीं है।
वैसे भी लोकसभा चुनाव अभी सात महीने दूर हैं। इतने लंबे समय तक मोदी की चुनावी मुहिम को धारदार बनाए रखना न सिर्फ कठिन है बल्कि खर्चीला भी। चूंकि सुषमा मध्य प्रदेश से ही सांसद हैं इसलिए उन्हें आडवाणी की दलील में दम दिख रहा है।
आडवाणी के बाद वरिष्ठतम नेता जोशी मोदी का नेतृत्व पचा नहीं पा रहे हैं।
मोदी समर्थकों का मानना है आडवाणी की दलील खोखली है। उन्होंने आडवाणी से भी पूछा कि 2009 के लोकसभा चुनाव से दो साल पहले ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया था। इस बीच कई विधानसभा चुनाव हुए जिनमें से किसी में कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा। बाबरी मस्जिद ध्वंस में उनकी भूमिका और कट्टरपंथी होने की छवि के बावजूद। तो मोदी की उम्मीदवारी का विपरीत प्रभाव कैसे और क्यों पड़ेगा?
मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने गुजरात की वे सभी सीटें जीतीं जहां अल्पसंख्यक वोट निर्णायक थे। तो मध्य प्रदेश में विपरीत प्रभाव कैसे पड़ सकता है। अगर पड़ेगा तो भी एक-दो पर न कि सभी 26 सीटों पर।
दरअसल, आडवाणी भाजपा में अप्रासंगिक हो गए हैं और न तो वे इस बात को स्वीकार कर पा रहे हैं और न ही मोदी के नेतृ्त्व को। इसलिए वे उनकी दावेदारी को पहले लंबित और फिर खारिज करने का रास्ता तलाश रहे हैं।
आडवाणी खेमा उनकी लोकप्रियता और ताकत को कम कर तो आंक ही रहा है। दूसरी ओर, मोहन भागवत जैसे संघ के शीर्ष नेताओं का कहना है कि उन्होंने देश भर में मोदी की लोकप्रियता को खुद महसूस किया है। यही वजह है कि गुजरात में जिस मोदी ने विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ के नेताओं के खिलाफ कड़े फैसले लिए, पूरा संघ उसी के पक्ष में एकजुट हो गया है।
संघ भाजपा पर भी दबाव बना रहा है कि जल्द से जल्द मोदी को आगे करे जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उनके पीछे आएं। संघ के नेताओं को लग रहा है कि यदि वे मोदी के पक्ष में उठ रहे जनसमर्थन को स्वर नहीं देंगे तो वे खुद अप्रासंगिक हो जाएंगे।
वहीं भाजपा नेताओं का मानना है कि सत्ता वापस पाने का इससे अनुकूल अवसर शायद फिर न मिले। यदि भाजपा सत्ता में आती है तो श्रेय मोदी के अलावा पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी मिलेगा।
मोदी के नाम पर अगर दूसरे दल भाजपा को समर्थन देने में आनाकानी करें तो राजनाथ प्रधानमंत्री पद के स्वत: दावेदार होंगे।
इस पूरे प्रकरण में कई विरोधाभास उभरे हैं। आडवाणी द्वारा मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ में कसीदे पढ़ जाने पर सबसे पहला विरोध सुषमा ने किया था। फिर पूरी पार्टी ही उनके खिलाफ हो गई थी।
अकेले मोदी ही पूरी ताकत से आडवाणी के पक्ष में खड़े थे।
आज सुषमा ही आडवाणी के साथ है और मोदी खिलाफ। इसी तरह जोशी और मोदी मिलकर कुशाभाऊ ठाकरे के बाद सुंदर सिंह भंडारी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने में जोरशोर से लगे थे।
आज जोशी मोदी के विरोध में हैं
गो-माँस उत्सव
Ramkesh Meena
"अक्कड बक्कड़ with Baum Sophie and 42 others
हाल ही में हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविधालय में गो-माँस उत्सव का आयोजन हुआ! मुझे ये जानकर बहुत दुःख हुआ कि इस आयोजन का विरोध करने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई! इस गम्भीर और आत्मसम्मान को ठेस पहुचाने वाले मुद्दे पर भी- जिस हिन्दू की भुजा न फडकी, खून न खौला सीने का। वो "हिन्दू का खून" नहीं, अरे होगा किसी "कमीने" का!
मैं हैदराबाद के साथ ही सम्पूर्ण विश्व के हिन्दुओं से ये पूछना चाहताहूँ कि- आखिर कब तक कायरों की भाँति जुल्म सहते रहोगे?
हाल ही में हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविधालय में गो-माँस उत्सव का आयोजन हुआ! मुझे ये जानकर बहुत दुःख हुआ कि इस आयोजन का विरोध करने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई! इस गम्भीर और आत्मसम्मान को ठेस पहुचाने वाले मुद्दे पर भी- जिस हिन्दू की भुजा न फडकी, खून न खौला सीने का। वो "हिन्दू का खून" नहीं, अरे होगा किसी "कमीने" का!
मैं हैदराबाद के साथ ही सम्पूर्ण विश्व के हिन्दुओं से ये पूछना चाहताहूँ कि- आखिर कब तक कायरों की भाँति जुल्म सहते रहोगे?
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